नागपत्री एक रहस्य-9
चंदा के घर अर्थात ससुराल में आए आज दो दिन बीत चुके थे, क्योंकि पंडित जी के बताए अनुसार कुल देवी के दर्शन हेतु उपयुक्त समय जो उन्होंने अपने पंचांग देख कर ज्योति गणना देख कर निकाला था।
अभी वह और दो दिन के बाद आने वाला था, बात स्पष्ट थी ,कि चाहे कुछ भी हो, इस बार दिनकर जी का इतने सालों बाद आगमन, वह भी विशेष इच्छा लेकर अवश्य ही उन्हें रुकने को बाध्य कर देगा ।
और कहीं ना कहीं दिनकर जी के भी मन में वहां अपने ससुराल में रुकने का मन बना ही रहा था, क्योंकि प्रतिदिन उन्हें कोई ना कोई नई बातें, नई सीख और नए चमत्कारों से रूबरू होना उन्हें मनभावन लग रहा था।
अब तो उनके मन में भी कुल देवी के दर्शन करने की लालसा बढ़ते जा रही थी, वे मन ही मन सोच रहे थे कि जब मात्र कुल देवी के दर्शन की इच्छा लेकर आने वाले व्यक्ति को इतना सुकून, शांति और प्रफुल्लित होना जैसे स्पष्टताएं नजर आ रही है, तब तो वाकई वह मंदिर कितना चमत्कारिक होगा। यह सोचने लायक होगा।
वह बार बार उन पहाड़ की चोटियों की तरफ देखते, जिनके ऊपर सफेद दूधिया बादल छाए हुए दिखते, ऐसा लगता जैसे बादलों के बीच की आकृति स्पष्ट नजर आती, सूर्य की किरणें संपूर्ण प्रांत को अपने ताप से दूर रखती।
अर्थात वहां हमेशा शीतलता बने रहती, ऐसा कहा जाता है, कि कुल देवी के मंदिर में जाने के कितने रास्ते हैं, यह आज तक कोई भी ना जान पाया।
मानव जाति ने माता के मंदिर पर आस्था के कारण अधिक शोध नहीं करना चाहा, सिर्फ जो रास्ता उन्हें बताया गया, वे आज भी उन्हीं का अनुसरण करते हैं, पहले वहां पथरीला रास्ता हुआ करता था, जिसे लोगों ने अभी काफी ठीक कर दिया।
लेकिन तब भी उन रास्तों पर आज भी संध्या के पश्चात किसी को भी आने-जाने की इजाजत नहीं है, इससे संबंधित बहुत सी कहानियां सुनने में आई है।
लेकिन सबका सार एक ही निकलता है, कि प्रातः छः बजे से संध्या छः बजे तक, अर्थात सिर्फ दिन का समय ही मानव जाति के लिए उपयुक्त है, बाकी समय उस पहाड़ी पर गलती से भी जाना निषेध है।
हालांकि इसके कभी कोई दुष्परिणाम नहीं देखे गए, यदि कोई भुल में रह जाए तो, लेकिन जिन लोगों ने जानबूझकर या किसी तांत्रिक विद्या के उद्देश्य अथवा लालच में आकर किसी हट से उन पहाड़ियों पर जाने का दुस्साहस किया, उनके बहुत बड़े दुष्परिणाम देखने को मिले।
लगभग कोई भी वहां से या तो जीवित न लौटा, या वापस आकर सांसरिक ना बचा हो, लेकिन किसने क्या देखा??
यह कोई नहीं जानता, और ना ही कोई बताता है,
लेकिन एक बात जरूर है कि अर्धरात्रि में आप बहुत दूरी से भी, कुछ क्षणों के लिए उठने वाली प्रकाश किरण जो, ऐसा लगता जैसे उस पहाड़ी से निकलकर सीधे आसमान में समा जाती है, और उस समय एक पल के लिए यदि पलक ना झपकी, तो व्यक्ति पूरे पर्वत के कण कण पर स्पष्ट तौर पर देख सकता है।
कोई इसे देवी का आगमन, कोई पराशक्तियों की उपस्थिति, तो कोई महाशक्ति की नागमणि का प्रभाव होता है, कहता हैं,
उस मंदिर में किसी भी प्रकार का चढ़ावा या विशेष पूजा अर्चना की स्पष्ट मनाई है,
सिर्फ और सिर्फ महाशिवरात्रि के समय ही वह भी मात्र दिन के समय एक विशेष शिव मंदिर को खोला जाता है, जहां महामृत्युंजय मंत्र का पाठ और शिव पूजन की अनुमति सिर्फ और सिर्फ दिन के समय मानव जाति को है।
यह कहा जाता है, कि दिनभर पूजन के पश्चात पुजारी को सफाई के लिए रुकने की अनुमति नहीं होती, लेकिन जब दूसरी सुबह उस मंदिर को पुनः खोला जाता है, तो वह पूरी तरह साफ सुथरा और सुसज्जित मिलता है।
उस मंदिर के बीचो-बीच महा कुंड के समीप स्थापित शिवलिंग और उन पांच नौ देवियों की प्रतिमाएं पूर्णतः जीवंत लगती है, और मुस्कुराते हुए लगती है।
ऐसा माना जाता है कि संध्या के पश्चात वहां पर अन्य देवी देवताओं और नाग रक्षक ,नागकन्या, गंधर्व और अन्य ऐसी प्रजातियां जिनके बारे में हम जानते भी नहीं,
वृक्ष, लताएं अनेक औषधियां प्रत्यक्ष रुप से वहां संध्या के पश्चात अपने अपने नियत समय के अनुसार पूजन हेतु प्रस्तुत होती , और पुनः लौट जाती।
इसलिए ऐसे अनेकों चमत्कारिक रहस्य देखने को मिलते हैं, यह कहा जाता है कि उस शिव मंदिर को सिर्फ वर्ष में एक ही बार खोला जाता है, सिर्फ और सिर्फ महाशिवरात्रि के समय ।
लेकिन तब भी मंदिर की साफ-सफाई देखकर ऐसा नहीं लगता, कि वहां कोई आता जाता नहीं, खासकर उस मंदिर में जब भी जलता हुआ दीपक और रोशनी के लिए जलाई गई, दो मसाले जो आज तक कभी नहीं बुझी, जब भी मंदिर को खोला गया, वे हमेशा जलती हुई दिखी।
उन्हें प्रज्वलित करने और जलते रहने के लिए घी कहां से और कैसे आता है??कोई नहीं जानता??
मंदिर का दीपक बरसों से एक ही जैसा जलता हुआ दिखाई देता है, जो किसी चमत्कार से कम नहीं है, ऐसा कहते कि बच्चे की आंखों में धुंधला दिखने पर एक क्षण के लिए उस दीपक की लौ के ऊपर यदि उसकी मां, मौसी, पिता, बुआ या कोई अपनी इच्छा से इन सब के ना होने पर उस दीपक की लौ के ऊपर अपनी उंगली ठहरा सके,
और आस्था पूर्वक नाग माताओं का स्मरण कर उंगली पर कालिक जमने तक स्थिर रख सके, तब तो काजल बनता है, उसे लगाने से उन बच्चों की आंखों में पुनः रोशनी लौट आती है। यह तथ्य उस मंदिर को और भी विशेष बनाता है।
लेकिन आश्चर्य तो तब होता है, जब एक छोटा सा मंदिर होने के पश्चात भी लाखों की भीड़ , जिन्हें सिर्फ दो दिन के लिए ही मंदिर में दर्शन की अनुमति और जो एक साथ मंदिर में प्रवेश करते, लेकिन तब भी मंदिर का प्रांगण छोटा ना पड़ता, किसी को भी वहां असहज महसूस नहीं होती।
आज तक किसी भी प्रकार की कोई भीड़भाड़ या दुर्घटना, ना तो सीढ़ी से आने जाने वाले, और ना ही मंदिर से आने जाने वाले लोगों ने ना सुनी और ना देखी होगी।
किसी भी यहां आने वाले ने आज तक कभी किसी भी प्रकार की असहजता आने-जाने, रुकने या हाली बीमारी से संबंधित नहीं बताई, हर किसी ने यहां आकर अपनी मनोकामना पूर्ण होने की बात कही, और सभी ने शांति व्यवस्था बनाए रखने की विनती ही की,
ऐसे मंदिर को दिनकर जी ने सिर्फ सुनकर ही इतने प्रफुल्लित थे, कि उनका मन था कि वे आज ही उस स्थान पर जाकर देखे, लेकिन शुभ मुहूर्त की बातें सुनकर उन्हें मन मसोटकर रुकना पड़ रहा था, और वह सिर्फ जल्द से जल्द जाने की बात सुनकर मन ही मन खुश भी थे।
क्रमशः....
Babita patel
15-Aug-2023 01:56 PM
Nice
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